तीसरी पास हलधर नाग को मिला पद्मश्री और जिनकी रचनाओं पर की जाती है पीएचडी

अगर कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल मे उठती है तो परिस्थितियां अपना रास्ता बदल लेती है । कुछ ऐसा ही किया है उड़ीसा के प्रसिद्ध कवि हलधर नाग ने । उनकी कहानी सुनकर आप भी मान ही जाएंगे कि परिस्थिति तो कभी मायने ही नही रखती है अगर सच मे व्यक्ति कुछ करना चाहता है तो ।
जब परिस्थितियों के सामने बिना झुके और सीना ठोककर कोई खड़ा होता है तो उसके द्वारा की गयी मेहनत परिणाम अवश्य दिखाती है और परिणाम कितना अच्छा हो सकता है ये तो आप हलधर नाग के बारे में जानकर ही समझ पाएंगे । 
कितनी मेहनत की होगी उस व्यक्ति ने और कितना अपने आपको तपाया होगा परिस्थितियों की आग में और मेहनत की धूप में जब तीसरी पास व्यक्ति पर पांच विद्वान पीएचडी करते हों । क्या शख्सियत बनाई है मेहनत ने उसकी की उसे एक पद्मश्री पुरुस्कार से नवाजा गया हो । जिस दिन हलधर नाग को पद्मश्री पुरुस्कार से नवाजा गया था ।  उस दिन पुरुस्कार से उनका सम्मान नही किया गया , बल्कि खुद पुरुस्कार हलधर नाग के हाथों जाकर सम्मानित हुआ था । 
 जो व्यक्ति परिस्थितियों की शिकायत करता है उसे एक बार हलधर नाग के जीवन के बारे में अवश्य पढना चाहिए । उसके बाद मैं एक बात तो दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसे उसकी परिस्थितियां बौनी ही नजर आएंगी। 





हलधर नाग का जन्म और बचपन का संघर्ष - 

हलधर नाग का जन्म 1950 में संभलपुर गांव से लगभग 76 किलोमीटर दूर बरगढ़ जिले में हुआ था । इनके परिवार की आर्थिक स्तिथि अच्छी नही थी। इनका जीवन मुसीबतों से भरपूर रहा है जिसके कारण इन्होंने बचपन से ही संघर्षो का सामना करना सीखा है । ये मात्र 10 साल के थे तब इनके पिताजी का देहांत हो गया था । जिसके कारण ये मात्र कक्षा तीन तक ही पढ़ाई कर सके।  

झूठे बर्तन भी धोने पड़े थे - 

घर की आर्थिक स्तिथि अच्छी नही होने के कारण ही इन्हें बचपन से काम करना पड़ा था । जिसके कारण इन्होंने एक मिठाई की दुकान पर लगभग 2 साल तक झूठे बर्तन धोने का कार्य किया है । एक बर्तन धोने वाले व्यक्ति की मेहनत को मेरी कलम भी सलाम करती है और इनकी मेहनत को मैं इनकी कहानी लिखकर सलाम करता हूँ । इसके बाद इन्हें एक विद्यायल में रोटी बनाने का काम मिला जिसे ये लगभग 16 साल तक लगातार करते रहे । 






स्टेशनरी की दुकान खोलने के लिए लिया 1000 रुपये का लोन -

स्कूल में काम करते समय एक बात ने इनका ध्यान खींचा की इनके गांव में बहुत से स्कूल खुल गए है और लगातार खुल भी रहे है इसलिए इन्होंने एक स्टेशनरी और बच्चो के खाने पीने के सामान की दुकान खोलने का फैसला किया ताकि घर चलाने के लिए और पैसे कमाए जा सके । इन्होंने आवश्यक पैसों के लिए एक बैंक से सम्पर्क किया और वहां से 1000 रुपयों का लोन लेकर अपनी एक दुकान शुरू कर दी । दुकान में स्कूल से फ्री होने के बाद बैठते थे । इस प्रकार ये स्कूल और दुकान दोनों जगह पर काम करके किसी प्रकार अपना घरखर्च चलाते थे ।

1990 में लिखी पहली कविता  -

1990 में हलधर नाग ने पहली कविता " ढोडो बरगाछ " लिखी जिसका मतलब होता है " पुराना बरगद का पेड़ " । इससे पहले ये लोक कथाएं लिखते थे । इनके कविता लिखने के पीछे भी एक मजेदार कहानी है ।। अगर उस दिन ऐसा नही हुआ होता तो उड़िया की भूमि और भारत की धरती एक महान कवि को खो चुकी होती । 1990 में जब इन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी तो इसे एक पत्रिका में प्रकाशित करवाने के लिए भेजा था , और वह कविता सम्पादक को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इसे पहली बार मे छाप दिया । 
 कविता के पत्रिका में प्रकाशित होने की खबर ने इन्हें इतना ज्यादा उत्साहित कर दिया कि इसके बाद इन्होंने चार कविताएं लिखी और उन्हें भी उसी पत्रिका के सम्पादक के पास छापने के लिए भेज दिया।  और वे चारों कविताएं भी उस पत्रिका में एक साथ छप गई । इससे उत्साहित होकर हलधर नाग ने कविताएं लिखना शुरू कर दिया और उसके बाद कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा । कविताओं को मिलने वाली प्रशंसा ने इन्हें और ज्यादा कविताएं लिखने को प्रेरित किया साथ ही साथ आलोचकों की टिप्पणियों ने इन्हें खुद की रचनाओं में भी सुधार करने को प्रेरित किया । उसके बाद आज तक लगातार ये उड़िया भाषा मे कविताओं की रचनाएं कर रहे है। 
सामाजिक मुद्दों और उत्पीड़न जैसी कुरूतियों पर आघात करती कविताएं -

इनकी कविताओं में सामाजिक मुद्दे प्रमुखता से रहते है और ये समाज मे होने वाले उत्पीड़न के लिए भी अपनी कविताओं के माध्यम से आवाज उठाते है ।  इसके साथ साथ ही इनकी कविताएं प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करती है । देवी देवताओ की पौराणिक कथाएं भी सुनाती है । 
हलधर नाग का मानना है कि हर लेखक को इस प्रकार अपनी रचनाएं करनी चाहिए जिससे लोगो के लिए एक सन्देश हो और जो वस्तविक जीवन से मेल खाती हो । 
बिना किताब के कविता सुनाने वाले कवि - 

हलधर नाग को बिना किताब के कविताएं सुनाने के लिए भी जाना जाता है । इन्होंने आज तक जितनी भी कविताएं लिखी है । वे सभी इन्हें अच्छे से याद है।  उड़ीसा में आज इनकी प्रसिद्धि का आलम ये है कि ये रोजाना कम से कम तीन से चार कार्यक्रमो में हिस्सा लेते है। 

साहित्य में योगदान के लिए मिला पद्मश्री -

हलधर नाग को उड़िया साहित्य में योगदान के लिए 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था । इससे पहले शायद ही कोई इन्हें उड़ीसा से बाहर जानता होगा क्योकि इन्होंने कभी किसी बड़े मंच पर कविता पाठ नही किया । इसके पीछे थी इनकी गरीबी । गरीबी का अंदाजा आप इस घटना से लगा सकते है कि जब इन्हें पद्मश्री के लिए चुना गया तो इनके पास कॉल आया कि आपको पुरुस्कार लेने दिल्ली आना है तो इन्होंने कहा कि मेरे पास दिल्ली तक आने के पैसे नही है यही भिजवा दीजिए पुरुस्कार । 
इसके बाद सरकार ने इनके दिल्ली तक आने जाने की व्यवस्था की थी ।
रचनाएं जो है विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का है  हिस्सा -
इनकी सभी रचनाए कोसली भाषा मे लिखी हुई है । इनकी सभी रचनाये हलधर ग्रन्थावली भाग - 1 और भाग - 2 नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुकी है जो संभलपुर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा है ।
इनकी रचनाओं पर पांच विद्वान पीएचडी भी कर रहे है ।


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