एक मजेदार कहानी जिसमे आप जानेंगे कैसे एक गुड़िया, शापित गुड़िया बन गयी ।


"माँsssss माँssssss मुझे ये गुड़िया चाहिए " शालिनी की बेटी ने दुकान में रखी गुड़िया की तरफ इशारा करते हुए कहा ।


"नही बेटा ये गुड़िया अच्छी नही है । मैं आपके लिए दूसरी इस से भी अच्छी गुड़िया ला दूंगी " शालिनी में अपनी बेटी के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा ।



"नही माँ , मुझे तो ये ही गुड़िया लेनी है । " बच्ची ने जिद करते हुए कहा ।


शालिनी ने अपनी बेटी को मनाने की काफी कोशिश की लेकिन बेटी थी कि मानने को शायद तैयार ही नही थी । सच भी है , बालमन जिसे पाने की जिद कर लेता है तो फिर उसे मनना सम्भव नही होता।


आखिर शालिनी को अपनी बेटी की जिद का आगे हारना ही पड़ा ।


" ठीक है , बेटा ये ही गुड़िया लेंगे " शालिनी ने अपनी बेटी को आश्वश्त किया ।


"ये गुड़िया भी दे दो भैया " शालिनी ने दुकानदार से गुड़िया को अपनी बैग में रखते हुए कहा।


बेटी के चहरे पर विजय मुस्कान तैर रही थी । उस मुस्कान को देख कर शालिनी के चहरे पर भी सन्तोष से परिपूर्ण खुशी साफ देखी जा सकती थी ।


शालिनी अपनी बेटी जिसका नाम प्रीति था के साथ दुकान से बाहर आगयी । बाजार में चारो तरफ काफी भीड़ थी । लग रहा था जैसे पूरा शहर ही उमड़ पड़ा हो । सारी खरीददारी आज ही करने निकला हो पूरा शहर ।


शालिनी ने अपनी बेटी को गाड़ी में बैठने का इशारा किया और गाड़ी स्टार्ट कर दी और अपने घर की ओर चल दी । सायं के 7  बज चुके थे । शालिनी ऑफिस से अपनी 6 साल की बेटी के साथ घर लौट रही थी । सुबह ऑफिस जाते समय शालिनी अपनी बेटी को उसके स्कूल छोड़ती है और उसके बाद ऑफिस जाती है । छुट्टी होने पर बेटी को अपने ऑफिस में ले आती है जहाँ से सायं को दोनों साथ - साथ घर के जरूरी समानो की खरीददारी करते हुए घर लौटती है । रोज का यही क्रम है ।


" आज स्कूल में आपने अपनी टीचर को परेशान तो नही किया ना " शालिनी में अपनी बेटी से पूछा जो गुड़िया को बैग से निकाल कर खेलने में व्यस्त थी ।


" नही माँ मैं किसी को परेशान नही करती , वो तो अनुष्का जब मुझे परेशान करती है तब मैं उसे सुधार देती हूँ , तो टीचर को लगता है कि मैं उन्हें परेशान करने के लिए ऐसा करती हूं  " प्रीति ने अपनी माँ के सवाल का जवाब दिया ।


" आज स्कूल में आपने क्या पढ़ा " शालिनी ने एक और सवाल दागा


" माँ अब मुझे परेशान मत करो मैं अपनी गुड़िया से बात कर रही हूं " प्रीति ने चिल्लाकर जवाब दिया ।


इस प्रकार के जवाब की शालिनी को उम्मीद नही थी । पहली बार प्रीति ने अपनी माँ को इस प्रकार जवाब दिया था । जिस से शालिनी को गुस्सा आ गया और उसने अपनी बेटी को डांट दिया।


धीरे - धीरे बाहर अंधेरा छा रहा था । सड़क एक दम सुनसान थी । कोई भी गाड़ी आ - जा नही रही थी ।


शालिनी ने बाहर के दृश्य को देख कर अपने आप से कहा - "आज क्या हो गया इस सड़क को जो गाड़ियों से भरी रहती थी । ये खामोशी अजीब सी क्यो लग रही है मुझे ।"


इस खामोशी ने शालिनी की धड़कने किसी अनहोनी के डर ने बड़ा दी थी । वह जल्द से जल्द अपने घर पहुचना चाहती थी । इसी डर से उसने गाड़ी की गति बड़ा दी ताकि जल्द से जल्द घर पहुचा जा सके।


ये क्या अचानक से गाड़ी चलते चलते बन्द हो गयी ।


" अब इसे क्या हो गया , ये क्यो बंद हो गयी है । " शालिनी ने अपने आप से बुदबुदाते हुए कहा ।


शालिनी ने काफी कोशिश की गाड़ी को स्टार्ट करने की लेकिन गाड़ी तो जैसे स्टार्ट ही नही होना चाहती थी ।


" गाड़ी में पेट्रोल तो सुबह ही डलवाया था । कल ही तो गाड़ी सर्विस से वापस आयी थी । अचानक से इसमे क्या खराबी आ गयी है । शायद इंजन में कोई खराबी आ हो गयी । बाहर जाकर देखती हूँ । " शालिनी बिना रुके बोले जा रही थी । एक तो बाहर की अजीब सी शांति उसे डरा रही थी ऊपर से गाड़ी बीच रास्ते मे खराब हो गयी थी ।


उसने बाहर निकल कर गाड़ी के इंजन को देखा वहां सब ठीक था । उसे समझ नही आ रहा था की समस्या कहाँ है । अब उसे किसी अनहोनी की आशंका होने लगी थी , जिसके कारण उसे डर लग रहा था । वह वापस गाड़ी में आकर बैठ गयी और अपना मोबाइल निकाला , लेकिन मोबाइल का नेटवर्क भी नही आ रहा था ।


" आज सबको एक साथ ही खराब होना था " शालिनी ने मोबाइल को लगभग फेंकते हुए अपने आप से कहा ।


शालिनी ने अपनी बेटी की तरफ देखा जो काफी देर से चुप बैठी थी । जो रोज लगातार बोलती रहती थी और शालिनी के चुप करवाने पर भी चुप नही होती थी । वह एक दम शांत बैठी थी । अपनी बेटी के इस अजीब से व्यवहार ने शालिनी को और डरा दिया लेकिन एक माँ होने के नाते उसने अपने बच्चे के सामने अपने डर को छुपाना बेहतर लगा ताकि उसकी बेटी डर ना जाए ।


" अपनी मम्मा से नाराज हो बेटा "शालिनी ने प्रीति की तरफ प्यार से देखते हुए पूछा लेकिन प्रीति ने कोई जवाब नही दिया । ऐसा पहली बार हुआ था जब प्रीति ने कोई जवाब नही दिया ।


" शायद मेरी बेटी अपनी मम्मा से बहुत ज्यादा गुस्सा है । " शालिनी ने नीचे गिरी हुई गुड़िया को उठा के प्रीति की गोद मे रखते हुए कहा - " अब अपनी मम्मा को माफ कर दो ।  आगे से मम्मा आपको नही डांटेगी । अपनी गुड़िया को सम्हालो कहि इसे कहि चोट तो नही लग गयी । देखो इसे कहि हॉस्पिटल तो नही ले जाना पड़ेगा । "


प्रीति ने हंसते हुए अपना सर पीटा -  " क्या गुड़िया को भी चोट लगती है। मम्मा आप तो बुद्धू हो एक दम । "


अपनी बेटी की वापस आयी हंसी ने शालिनी के डर को एक ही झटके में मन से बाहर निकल फेंक दिया ।


" चलो एक बार ओर प्रयास करते है गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए " शालिनी ने हंसते हुए प्रीति से कहा ।


अबकी बार गाड़ी स्टार्ट हो गई । शालिनी और प्रीति हंसते , बाते करते हुए घर की तरफ चल दिए ।


घर पहुँचते ही शालिनी रात का खाना बनाने के लिए रसोई में चली गयी । प्रीति अपने कमरे में गुड़िया से खेलने लगी ।


" ये क्या गिरने की आवाज थी " शालिनी एक दम दौड़ते हुए कमरे में पहुची ।  वहाँ का दृश्य देख कर शालिनी के होश उड़ गए । पूरे कमरे का सामान इधर - उधर बिखरा हुआ था। चारो तरफ कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे ।


उन कांच के टुकड़ों से प्रीति ने अपने दूसरे खिलौनों को तहस -  नहस कर दिया था । मानो किसी का खून कर दिया हो । चारो तरफ खिलौने ऐसे बिखरे थे जैसे लोगो के शव पड़े हो । प्रीति के बाल बिखरे हुए थे । उसके हाथों से खून बह रहा था लेकिन उसे देख कर नही लग रहा था कि उसे कोई चोट लगी थी।  उसके मुंह पर खून लगा हुआ था जैसे उसने किसी का खून पिया हो ।


शालिनी ने खबरा कर लगभग चीखते हुए प्रीति को अपनी गोद मे उठाया और कमरे से बाहर की तरफ दौड़ लगा दी । लेकिन कमरे का दरवाजा नही खुल रहा था । जैसे किसी ने बाहर से बन्द कर दिया हो । अचानक से घर की लाइट बंद हो गयी । सारी खिड़कियां बंद हो गयी । कमरे में अजीब सी डरावनी आवाजे गूंजने लगी थी । अंधरे में शालिनी को प्रीति नजर नही आ रही थी।


"प्रीतिईईईई - प्रीतिईईईईई , कहाँ हो तुम " शालिनी डर से कांपते हुए चिल्लाई लेकिन उसे चारो तरफ कहि भी उस अन्धेरे मे प्रीति नजर नही आई । बाहर भी अचानक से तेज तूफान चलने लगा था । बिजली चमक रही थी । बाहर का मौसम शालिनी के डर को ओर बड़ा रहा था ।


"माँsssss मैं यहां हूँ "


आवाज की तरफ घूमते हुए शालिनी ने जैसे ही देखा वह बेहोश होते होते बची। लाल चमकती आंखे उसके सामने थी ।


चमकती बिजली में उसकी आंखें ऐसे नजर आ रही थी जैसे आंखों से खून बह रहा हो । प्रीति अपने हाथों में वही गुड़िया पकड़े हुए थी।  वह गुड़िया भी खून से सनी हुई ऐसे लग रही थी जैसे खून से नहा कर आयी हो । प्रीति के हाथों में चाकू तलवार की तरह चमक रहा था । वह चाकू लिए धीरे - धीरे प्रीति अपनी माँ की तरफ बढ़ रही थी ।


शालिनी डर के मारे कांप रही थी । शालिनी दरवाजा खोलने की कोशिश कर रही थी , लेकिन दरवाजा खुल नही रहा था । काफी कोशिश करने के बाद आखिरकार दरवाजा टूट गया । दरवाजा टूटते ही शालिनी बाहर की तरफ दौड़ी । उसके पीछे  - पीछे प्रीति हाथ मे चाकू लिए दौड़ रही थी । शालिनी दौड़ते हुए गाड़ी का दरवाजा खोल कर गाड़ी में बैठ गयी । गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन घबराहट में गाड़ी स्टार्ट नही हो पा रही थी । तब तक प्रीति गाड़ी तक पहुँच गयी और चाकू से गाड़ी के कांच पर वार करने लगी ।


घबराकर शालिनी दूसरी तरफ से बाहर निकल गयी । पीछे पीछे प्रीति चाकू लिए दौड़ रही थी । दौड़ते - दौड़ते शालिनी गिर गयी तब तक प्रीति उस तक पहुच गयी थी । प्रीति , शालिनी पर चाकू से वार करने लगी और शालिनी प्रीति के वार से बचने की कोशिश । लेकिन फिर भी शालिनी के हाथों पर पैरों पर और पेट मे चाकू  लग गया था । शालिनी खून से लथपथ हो गयी । शालिनी मदद के लिए चिल्ला रही थी इस तूफान में किसी तक भी उसकी आवाज नही पहुँच रही थी।  वह असहाय हो चुकी थी फिर भी उसने हिम्मत नही हारी । वह बचने की नाकाम कोशिश कर रही थी । अचानक उसके हाथ मे एक लकड़ी का डंडा लगा । उसने न चाहते हुए भी प्रीति पर जोर से वार किया और चाकू छिटक कर दूर जा गिरा । चाकू छूटने पर प्रीति शालिनी पर झपटी और उसका गला दबाने लगी । शालिनी लगभग मृतप्राय हो चुकी थी । लेकिन फिर भी अपने आपको उसकी गिरप्त से छुड़ाने का प्रयास कर रही थी।  इस प्रयास में  शालिनी के हाथ गुड़िया लग गयी । जीने की कोशिश में शालिनी ने उस गुड़िया को अपनी तरफ खींचा जिस से गुड़िया का सर अलग हो गया । लेकिन अब प्रीति की गिरप्त और कसती हो गयी।  शालिनी की आंखे बाहर निकलने का आगयी । वह सांस नही ले पा रही थी । इसी कशमकश में उसके हाथ गुड़िया का बाकी हिस्सा लग गया और उसने उसे छीन कर दूर फेक दिया ।


गुड़िया को दूर फेकते ही प्रीति ने शालिनी को छोड़ दिया और गुड़िया लेने दौड़ी । जिस से शालिनी की जान में जान आई । शालिनी भी गुड़िया लेने को दौड़ी । प्रीति से पहले शालिनी ने गुड़िया को लिया और उसे अपने घर के बाहर फेक दिया ।


बदहवास प्रीति की चेतना वापस लौट आयी । प्रीति ने अपनी माँ को खून से लथपथ देखा तो वह रोने लगी और दौड़ के शालिनी के गले लग गयी। शालिनी को अभी भी डर लग रहा था । फिर भी उसने उसे अपने गले लगा लिया । शालिनी को अब समझ आ गया था की ये सब किस्सा उस गुड़िया के कारण ही था । वह गुड़िया शापित थी।


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