(भाग - 2 शापित गुड़िया से आगे ).............
गुड़िया वाले हादसे ने शालिनी को सदमे में पहुंचा दिया । काफी दिनों तक शालिनी को हॉस्पिटल में रहना पड़ा । शालिनी की हालत ऐसी हो गयी कि कई बार तो वह अपनी बेटी प्रीति को देख कर भी डर जाती । अब बेटी की खामोशी और उनका गुस्सा शालिनी को उस बीते डरवाने कल की यादों तक ले जाता है ,जिसे वह कभी याद नही करना चाहती ।
हॉस्पिटल से शालिनी जब घर वापस आयी तो बिल्कुल भी सहज नही थी । वह घर मे भी डरी - डरी रहती थी । घर के हर कमरे से गुड़िया , गुड़िया की फ़ोटो को घर से बाहर निकाल दिया था ।
काफी समय बाद शालिनी अपने काम पर लौट पाई थी । धीरे - धीरे काम की व्यस्ता ने उसके दिल और दिमाग से उस डर को धीरे - धीरे बाहर निकालने में काफी मदद की । अब शालिनी को वह घटना याद नही थी । वह अपनी पहले जैसी सामान्य ज़िंदगी मे वापस लौट आयी थी ।
शालिनी का हैदराबाद से कर्नाटक स्थानांतरण हो गया था । नया शहर नई उम्मीदों के साथ शालिनी ने कर्नाटक की धरती पर कदम रखा ।
" कर्नाटक में आपका स्वागत है मैम " - शालिनी को लेने आये कम्पनी के ड्राइवर ने शालिनीं का अभिवादन किया।
" लाओ , आपका समान मैं रख देता हूं " - इतना कह कर ड्राइवर ने शालिनी का बैग गाड़ी में रखा और ड्राइवर सीट पर आकर बैठ गया ।
शालिनी ने ड्राइवर को धन्यवाद कहा और अपनी बेटी प्रीति के साथ पीछे की सीट पर आकर बैठ गयी ।
ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और कम्पनी की तरफ चल दिया ।
" यहां से ऑफिस कितनी दूर है " शालिनी ने पूछा
" यहाँ से सिर्फ 15 मिनट दूर है " ड्राइवर ने जवाब दिया
" ओके " - शालिनी ने जवाब दिया ।
" सबसे पहले मैं आपको , कंपनी के फ्लैट लेकर जाऊंगा । जहाँ आप थोड़ा फ्रेश हो ले और आराम कर ले । वहाँ आप तब तक रह सकती है , जब तक आपको रहने के लिए कोई घर नही मिल जाता । उसके बाद आपको ऑफिस ले कर जाऊंगा । " ड्राइवर ने बिना पूछे ही अपना आगे का तय कार्यक्रम बता दिया ।
" चलो अच्छा है । यात्रा में थकावट भी हो गयी है । थोड़ा आराम भी मिल जाएगा तो काम मे अच्छे से मन लगेगा" - शालिनी ने अपने आप से कहा ।
15 मिनट के बाद शालिनी कंपनी के फ्लैट पहुँच गयी । ड्राइवर ने शालिनी को कमरा दिखाया और सामान भी कमरे में ला कर रख दिया ।
" जब आप चलने को तैयार हो जाये तो मुझे इस नंबर पर कॉल कर देना । मैं आपको लेने आजाउँगा ।" ड्राइवर ने अपना कार्ड टेबल पर रखते हुए एक ही सांस में सब कह दिया और तेजी के साथ कमरे से बाहर निकल गया ।
शालिनी ने ड्राइवर के जाने के बाद स्नान किया और थोड़ा आराम किया ।
लगभग 40 मिनट के बाद शालिनी अपनी बेटी के साथ ऑफिस के लिए रवाना हुई । आधे घण्टे के बाद शालिनी अपने ऑफिस पहुँची और अपना काम सम्हाल लिया ।
जल्द ही शालिनी अपने स्टाफ के साथ घुलमिल गयी ।
नए शहर में शालिनी को घर ढूंढने में भी ज्यादा परेशानी का सामना नही करना पड़ा ।
उसे शहर की भाग दौड़ से दूर एकांत में प्रकृति की गोद मे बसा एक घर मिल गया था ।
यह घर पुराने जमाने के महलों जैसा था , लेकिन काफी समय से यह बंद भी था , लेकिन यह अभी भी अपने उस आलीशान वैभव को अपने अंदर समेटे हुए था। घर के सामने एक बगीचा था , लेकिन बिना किसी सार - सम्हाल के वह बंजर जैसा हो गया था। इसे अभी भी सुंदर बनाया जा सकता है।
" इस पूरे घर को सेट करने में तो मेरी तो जान ही निकल जाएगी " शालिनीं ने घर और सामान को देख कर कहा
" नही मम्मा आपकी जान नही निकलेगी मैं आपकी सहायता करूंगी न घर को ठीक करने के लिए " प्रीति ने मासूमियत से कहा
" हाँ , जब मेरी बेटी मेरे साथ हो तो मुझे कोई समस्या नही आएगी , चलो करते है अपने नये घर को रहने लायक " शालिनीं ने मुस्कुराते हुए बेटी की तरफ देखते हुए कहा ।
दोनों मां बेटी ने घर को व्यवस्थित करने में पूरा एक दिन लगा दिया । अब घर सच मे एक दम महल जैसा ही लग रहा था । सायं का भोजन शालिनीं और प्रीति ने घर के बाहर किसी रेस्टोरेंट में किया । दोनो को वापस लौटते हुए काफी रात हो चुकी थी । पूरे दिन काम करने के कारण दोनों काफी थक चुकी थी तो आते ही सो गई ।
देर रात अचानक शालिनी की आंख खुली । उसे लगा कि शायद कोई दरवाजा खटखटा रहा है । शालिनीं ने अपने मोबाइल में समय देखा तो रात के लगभग 2 बज रहे थे ।
" इतनी रात को कौन हो सकता है । यहां तो मुझे कोई जानता तक नही " शालिनीं ने सोचा
शालिनी ने प्रीति की तरफ देखा कहि आवाज से उसकी नींद तो नही खुल गयी । लेकिन वह तो गहरी नींद में थी । उसने बाहर कमरे से बाहर निकल कर देखा तो वहां कोई नही था । घर का मुख्य द्वार खुला हुआ था ।
" शायद आज थकावट के कारण मैं इसे बंद करना ही भूल गयी " - शालिनी ने अपने आप से बुदबुदाते हुए कहा और दरवाजा बंद करके सोने चली गयी । लेकिन शालिनी को नींद नही आरही थी । सांय - सांय करके बहती हवा रात की नीरसता को चीर रही थी । जिस से होने वाली पेड़ो की आवाज वातावरण को डरावना बना रही थी ।
शालिनी सोने की कोशिश कर रही थी लेकिन शायद नींद अब कोसो दूर थी । इसी कशमकश में कब पूरी रात निकल गयी और भौर की पहली किरण कब निकल आयी पता ही नही चला ।
शालिनीं ने रोज का काम पूरा किया और बेटी के साथ आफिस के लिए निकल गयी । आज शालिनीं का जन्मदिन था । सुबह से ही शालिनीं के मोबाइल पर बधाई संदेशों की बाढ़ आयी हुए थी । ऑफिस पहुँचते ही शालिनी का स्टाफ ने जोरदार स्वागत किया । ऐसे भव्य स्वागत की शालिनी को उम्मीद ही नही थी । अपने घर से दूर भी उसका कोई इस तरह जन्मदिन की शुभकामनाएं दे सकता था । शालिनीं के जन्मदिन के लिए पूरे आफिस को सजाया गया था ।
शालिनीं आज आफिस से जल्द ही निकल गयी क्योकि आज उसने अपने घर मे अपने स्टाफ और कुछ नए बने पड़ोसियों के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी । जिसकी तैयारियां भी करनी थी ।
आफिस से लौटते समय शालिनीं ने बाजार से पार्टी के सामान के साथ साथ एक खरगोश का जोड़ा और एक रंग बिरंगी चिड़ियाओं का पिंजरा खरीदा । ताकि घर मे प्रीति और शालिनीं का खाली समय मे मन लग जाये ।
घर पहुँच कर शालिनीं शाम की पार्टी की तैयारी करने लगी और प्रीति आज ही खरीदे नए दोस्तो के साथ खेलने में मग्न हो गयी ।
शाम को निश्चित समय पर मेहमान पहुच चुके थे और शालिनीं भी तैयारी पूरी करके बगीचे में आगयी । शालिनीं ने केक काटकर पार्टी शुरू की । सब अपनी मस्ती में मस्त पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। लेकिन अचानक से प्रीति के चीखने की आवाज ने सबका ध्यान घर के अंदर की तरफ खींचा । जब तक आये हुए मेहमान कुछ समझ पाते शालिनीं दौड़ कर अंदर जा चुकी थी लेकिन कुछ क्षण के बाद ही शालिनीं के चीखने की आवाज ने आये हुए सभी मेहमानों को घर के अंदर दौड़ने को मजबूर कर दिया । सबने अंदर जाकर देखा तो सबके होश उड़ गए । आज ही लाये हुए खरगोश और चिड़िया की गर्दन कटी हुई गिरी थी और कमरे का फर्श खून से सना हुआ था। प्रीति डर के मारे अपनी माँ से लिपटी हुई थी । कोई भी कुछ समझ पाता इससे पहले घर का मुख्य द्वार जिस से सब अंदर आये थे एक तेज धमाके के साथ बंद हो गया । सब दरवाजे की तरफ देख ही रहे थे कि पीछे से किसी के चीखने की आवाज ने सभी को डरा दिया । फर्श पर शालिनीं का एक सहकर्मी खून से लथपथ गिरा हुआ था । जिसकी गर्दन पर किसी धारदार हथियार से वार किया हुआ था । लेकिन ये किसने किया ? कोई भी इसका जवाब देने की अवस्था मे नही था । कमरा अजीब सी डरावनी आवाजो के शोर से भर गया था । सबने एक साथ दरवाजे की तरफ दौड़ लगा दी लेकिन दरवाजा खुल नही रहा था । जैसे किसी ने बाहर से ताला लगा दिया हो । सब एक साथ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ दौड़े लेकिन सीढ़ियों के पास पहुंचते ही ऊपर जाने का दरवाजा भी तेज आवाज के साथ बंद हो गया ।
अचानक कमरे में किसी की आवाज गूंजी - " तुमने मेरे घर मे कदम रखने की कोशिश कैसे की अब सबको इसका अंजाम भुगतना ही पड़ेगा । यहाँ से भी कोई जिंदा बचकर नही जा सकता"
इसी आवाज के साथ शालिनीं को एक परछाई नजर आती है । जिसके बाल बिखरे हुए थे । शरीर में जगह जगह से खून बह रहा था। आंखे तो मानो रक्त का एक दरिया जैसी ही लग रही थी । लम्बे - लम्बे दांत बाहर निकले हुए थे । हाथों के नाखून तो , नाखून थे नही । वे तो मानो खंजर थे । मुहँ खून से सना हुआ था । जैसे अभी अभी किसी का रक्तपान किया हो ।मानो कमरे में कोई पिशाच आगया हो। उसके इस भयानक रूप को देख कर तो दो महिलाएं तो वही बेहोश होकर गिर गई , शायद डर के मारे उनके प्राण पखेरू भी उड़ गए थे। उस भयानक पिशाच ने कमरे में सभी लोगो के सामने उन दोनों महिलाओं के सर को धड़ से अलग कर दिया और उनकी अंतड़िया निकाल का खा गया ।
उसके इस भयानक रूप को देख कर सभी के होश उड़ गए । सब चीखते - चिल्लाते इधर - उधर किसी भी प्रकार अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे थे । किसी ने खुद को कमरे में बनी अलमारियों में बन्द कर लिया तो कोई कमरों की तरफ दौड़ा। उस हॉल में चारो तरफ शव बिखरे हुए थे । हॉल का फर्श तो मानो खून की नदियां बहा रहा था ।
शायद उन सभी की किस्मत आज अच्छी नही थी । आज उनकी शायद जीवन की अंतिम रात्रि थी । शालिनीं ने भी अपने आप को एक कमरे में औरो के साथ बन्द कर लिया और किसी भी प्रकार इस घर से बाहर निकले के बारे में सोचने लगी। किसी को कुछ समझ नही आरहा था , कि क्या किया जाए । इस मुसीबत से कैसे बाहर निकला जाए। सब दुआ मांग रहे थे कि किसी भी प्रकार उनकी जान बच जाए ।
बाहर पिशाच अपना खूनी खेल रहा था । उसने लगभग सभी लोगो को मार दिया था । उनके सिर इधर उधर बिखरे हुए थे मानो किसी ने बहुत सारी फुटबाल बिखेर दी हो । तभी उस कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज आई जिसमे शालिनीं और उसके साथी छिपे हुए थे । कमरे में अंधेरा था ।
शालिनीं ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा - " शसससस "
कमरे में शांति छा गयी । बाहर तेज तूफान के साथ बारिश भी शुरू हो गयी । ऐसा लग रहा था मानो मौसम भी आज सबके रक्त का ही प्यासा हो । तभी शालिनीं का हाथ किसी चीज से टकराया । जब उसने टटोल कर देखा तो वह कुल्हाड़ी थी। तभी उसके दिमाग मे एक विचार कौंधा । वे सभी कमरे के दरवाजे के पास में ही छिपे हुए थे। कमरे का दरवाजा भी खुला हुआ था। उसने प्रीति को गोद मे उठाया और कुल्हाड़ी लेकर हॉल की तरफ दौड़ी । उसके साथ बाकी सभी भी हॉल की तरफ दौड़े । पलक झपकते ही सब घर के मुख्य दरवाजे के पास थे। सब ऐसे दौड़े मानो की बिजली पर सवार हो ।उनके पीछे पीछे वह पिशाच भी आगया ।
शालिनीं लगातार कुल्हाड़ी के दरवाजे पर वार किए जा रही थी । लेकिन जब तक दरवाजा टूटता वह पिशाच भी वहां तक पहुच गया । एक बार तो सबकी सांसे रुक गयी थी । क्षणभर के लिए रुकी शालिनीं ने अपनी पूरी ताकत से कुल्हाड़ी का वार दरवाजे पर किया । अबकी बार दरवाजा टूट गया । दरवाजा टूटते ही शालिनीं प्रीति को लिए हॉल से बाहर की तरफ दौड़ पड़ी । लेकिन तब तक वहाँ पहुचे उस पिशाच ने बाकी बचे हुए व्यक्तियों को भी मार दिया । लेकिन शालिनीं खुद को और प्रीति को बचाने में कामयाब हो गयी । लेकिन उस डर ने शालिनीं के इतना डरा दिया कि वह बदहवास सी प्रीति को गोद मे उठाये सड़क पर रात के अंधकार में दौड़े जा रही थी । सोचे जा रही थी क्या ये भी शापित था । क्या ये शापित बंगला था ।
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