"बेटा, आज से श्रावण मास प्रारम्भ हो गया है, कम से कम आज तो शिव मन्दिर चला जा" - रमा ने अपने बेटे प्रांशु से कहा।
"नही मम्मी, मैने आपको हज़ार बार कहा है कि मुझे इन पूजा पाठ में मत फंसाओ, मैं नही मानता इन्हें । क्या होता है ये सब करने से ? कुछ मिला है आज तक आपको या देखा है कभी भगवान को आपने ? "
" पर बेटा....."
"बस मम्मी, आप बहस मत कीजिए। मैं तो आज दोस्तों के साथ पिकनिक पर जा रहा हूँ। क्यो मेरा दिमाग खराब कर रही हो इन पत्थर की मूर्तियों के लिए ..." प्रांशु बड़बड़ाता हुआ गुस्से में अपना सामान पैक करने लगा ।
" तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है इन सब पूजा पाठ के चक्कर मे , देख नही रही बेटा घर से बाहर जा रहा है और तुम हो कि उसे परेशान कर रही ही । कही कुछ उल्टा सीधा हो गया ना उसके साथ तो पूजते रहना अपने पत्थर के भगवान को " प्रांशु के पिताजी राकेश गुस्से में अपनी पत्नी पर चिल्लाते हुए बाथरूम में चले गए ।
रमा हमेशा की तरह मन मसोस और अपनी आंखों में अदृश्य आंसुओ की धारा को समेट कर रह गयी, पर क्या करे इकलौता बेटा था ज्यादा कुछ कह भी नही सकती थी ऊपर से पति के प्यार ने प्रांशु को और ज्यादा बिगाड़ के रख दिया था ।
"ठीक है मम्मी, मैं निकलता हूँ, शाम तक वापिस आ जाऊंगा।"
"आराम से जाना बेटा, और हाँ ज्यादा देर मत करना"
००००
प्रांशु अपने दोस्तों विवेक, नवीन और कर्ण के साथ निकल जाता है, वो चारों जंगल सफारी की योजना बनाते है और एक गाड़ी किराए पर लेते है।
विवेक को ड्राइविंग आती थी, वो गाड़ी चला रहा था।
वो चारों उस सुहावने मौसम में जंगल सफारी का आनंद ले रहे थे।
"यार, ये बड़े लोग हर समय ज्ञान देते रहते है"
प्रांशु गुस्से में बोलता है।
" क्यों आज क्या बात हुई " नवीन ने प्रांशु से पूछा
"बस यार वो ही मन्दिर जाओ, भगवान को पूजा करो वगैरह वगैरह " प्रांशु ने जवाब दिया
" सही है यार, मेरे मम्मी पापा भी डाँटते रहते है मुझे, जबकि मैने उन्हें कह दिया कि मुझे इन सब पर भरोसा नही "
कर्ण ने भी इस बात की सहमति दी।
" लेकिन यार, ये बात भी सत्य है कि ईश्वर के कारण ही ये दुनिया चल रही है " विवेक ने उनसे कहा
" अरे यार, हमे पता है कि तुम ईश्वर में भरोसा करते हो पर कम से कम अब तुम तो शुरू मत हो जाना " नवीन ने ठहाका लगाते हुए कहा
" नही यार, मैं ज्ञान नही दे रहा पर ईश्वर के अस्तित्व को नकार भी नही सकते.... "
" ठीक है, ईश्वर के भक्त, पर अभी तो सिर्फ जंगल सफारी का ही मज़ा लेते है , तेरा ज्ञान बाद में लगे भगवान के भक्त " कर्ण ने अपने हाथ जोड़ते हुए विवेक के पैरों में लगभग गिरते हुए बात बीच में काट दी।
चारों ने पूरा दिन वही बिताया, उन्होंने खूब मौज मस्ती की , जंगल सफारी का आनंद लेते हुए उन्हें शाम हो गई ।
" चलो यार, अब चलते है शाम होने वाली है " विवेक ने उठते हुए कहा
" हाँ यार, अब निकलते है " तीनो ने एक साथ उठते हुए कहा
वो चारों घर के लिए निकलते है।
थोड़ी दूर जाने पर उन्हें अहसास हुआ कि वो गलत रास्ते पर आ गए है।
"अरे विवेक, ये तो वो रास्ता नही है जहाँ से हम आए थे" नवीन ने कहा
"हाँ यार, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है" कर्ण ने नवीन की बात का समर्थन करते हुए कहा ।
वो गाड़ी को वापिस घूमाते है लेकिन 3 - 4 बार वो वापिस उसी रास्ते पर आ जाते। अब उनके मन में घबराहट होने लगी थी, शाम भी धीरे धीरे रात में तब्दील हो रही थी।
उन चारों ने अपना फ़ोन चेक किया था वहाँ नेटवर्क भी नही आ रहा था। अचानक विवेक ने गाड़ी के ब्रेक लगा दिए ।
" अब तुमने गाड़ी क्यो रोक दी विवेक " कर्ण ने चिल्लाते हुए कहा ।
" वो सामने देखो " विवके ने घबराते हुए कहा
सामने पांच व्यक्ति अपने मुंह को ढके हुए अपने हाथों में बंदूक लहराते हुए उनकी तरफ बढ़ रहे थे । विवेक लगातार गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश कर रहा था लेकिन गाड़ी स्टार्ट नही हो रही थी । अब तो घबराहट और डर के मारे उनके पसीने छूटने लगे और मदद के लिए चिल्लाने लगे , लेकिन उस बीहड़ जंगल मे उनकी आवाज सुनने वाला कोई नही था ।
" अब तो भोलेनाथ ही हमे बचा सकता है । हर हर महादेव " विवके ने कांपती हुई आवाज में कहा तब तक वो लुटेरे गाड़ी के पास आ चुके थे।
" ए बाहर निकलो और तुम्हारे पास जो कुछ भी है सब निकालो , ज्यादा चूँ चपाट की तो गोली मार दूंगा । " उन लुटेरों में से एक नए विवेक के सर पर बंदूक तानते हुए कहा
चारो दोस्तों ने जो कुछ भी उनके पास था वो सब निकाल कर गाड़ी की सीट पर रख दिया और गाड़ी से बाहर आ गए ।
सबकी सांसे अटकी हुई थी । वे चारो दोस्त जो अभी कुछ घण्टो पहले भगवान को मानने को तैयार ही नही थे वे मन ही मन भगवान से इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिए प्रार्थना कर रहे थे ।
वो प्रार्थना कर ही रहे थे कि अचानक से किसी के चिल्लाने की आवाज आती है
" अपने हथियार फेंक दो तुम कहि बच कर नही जा सकते क्योंकि तुम्हे चारो तरफ़ से घेर लिया गया है । "
लुटेरे कुछ समझ पाते इससे पहले ही सेना के जवान अपने हाथों में हथियार लिए उनके पास आ चुके थे । अब लुटेरों के पास समर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नही बचा था । लुटेरों ने अपने हथियार नीचे डाल दिये थे और समर्पण कर दिया था ।
" तुम घर जाओ बेटा , इतनी रात को इस भयानक जंगल मे तुम क्या कर रहे थे " सेना की उस टुकड़ी के कमांडिंग ऑफिसर ने चारों दोस्तो से पूछा
" वो हम पिकनिक मनाने आये थे और रास्ता भटक गए । तभी पता नही कहा से अचानक से हाथों में हथियार लिए इन लुटेरों ने हमे घेर लिया । वो तो आप आगए समय पर नही तो पता नही हम ज़िंदा भी रहते या नही " नवीन ने हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया
" कोई बात नही , चिंता मत करो सब भोलेनाथ की माया है । यही पास में हमारी चौकी है और हम गस्त पर थे तो भोलेनाथ ने तुम्हारी तरफ हमे भेज दिया क्योकि भोलेनाथ सबकी रक्षा करते है " कमांडिंग ऑफिसर ने चारो के कंधों पर है बारी बारी से हाथ रखते हुए कहा।
कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें रास्ता बताया और वो चारो घर के लिए निकल गए ।
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जब दूसरे दिन चारो दोस्तो ने पता किया तो पता चला कि उस जंगल मे सेना या पुलिस की ऐसी कोई चौकी नही थी । अब उन्हें विश्वास हो गया था कि हो ना हो भोलेनाथ ने स्वयं आकर हमारी जान बचाई थी ।
उस दिन के बाद से अब विवेक की तरह प्रांशु, नवीन और कर्ण भी ईश्वर के भक्त बन गए आखिर उन्होंने स्वयं अपनी आँखों से ईश्वर का चमत्कार देखा था।
*सुरेंद्र हिन्दू*
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