खौफनाक जंगल

भाग - 3   (शापित बंगला से आगे...........) 

बदहवास दौड़ती शालिनी बिना कुछ सोचे , बिना देखे लगातार अंधेरे में दौड़ती जा रही थी । जैसे शायद जीवन का लक्ष्य यही हो और सुबह होने से पहले ही अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहती हो । सच ही है जब जान पर बन आती है तो व्यक्ति अपने पूरे सामर्थ्य के साथ उसका मुकाबला करता है ।

दौड़ते - दौड़ते शालिनीं अचानक ही किसी किसी गड्ढे में गिर जाती है । लगातार दौड़ने से शरीर में शक्ति नही बची थी । जिसके कारण गिरते ही शालिनी बेहोश हो गयी ।

" माँ.... माँ... उठो माँ... " प्रीति की आवाज से शालिनीं की आँखे खुली । सामने प्रीति को सही सलामत देख कर शालिनीं ने उसे कस कर गले लगा लिया ।

" हम कहाँ है बेटा " शालिनीं ने चारों तरफ देख कर कहा ।

" पता नही माँ.... हम कहाँ है । मैं कब से आपको उठाने की कोशिश कर रही हूं , लेकिन आप तो उठ ही नही रही । मुझे डर लग रहा है माँ " प्रीति ने एक ही सांस में सब कह दिया ।


शालिनीं ने उठने की कोशिश की , लेकिन उसे उठने में तकलीफ हो रही थी । शायद गिरने के कारण कमर में चोट लगी हो । फिर भी वह उठ कर बैठ गयी । चारो तरफ नजर दौड़ाने के बाद शालिनीं को समझ आया कि वह एक बीहड़ जंगल मे फंस गई है । अगर वह जल्द ही यहां से बाहर नही निकली तो यहाँ रहना किसी खतरे से खाली नही होगा । ऊपर से प्रीति एक नन्ही सी जान भी उसके साथ थी । उसने उठने की कोशिश की लेकिन शरीर साथ नही दे रहा था । फिर भी उसने प्रयत्न किया । उसके सिर में गहरी चोट लगी थी । जहाँ से बह रहा खून अब सूख चुका था । हाथों और पैरों में भी गहरे घाव के निशान मौजूद थे। जो बता रहे थे कि वो किस तरह से गिरी होगी।

उसने प्रीति को चलने का इशारा किया और उस जंगल मे बिना किसी जानकारी बिना रास्ते के ही चल पड़ी ।

" हम कहाँ जा रहे है माँ " प्रीति ने मासूमियत से अपनी माँ के पीछे चलते हुए पूछा ।

" क्या हम मर जाएंगे " " क्या कोई भी हमे बचाने नही आएगा "

प्रीति बिना किसी भी जवाब की अपेक्षा किये बस प्रश्न किये जा रही थी । उसके इन प्रश्नों में उसकी मासूमियत के पीछे छिपा गहरा डर साफ झलक रहा था ।

" नही बेटा हमे कुछ नही होगा। हम ज़िंदा रहेंगे । आपकी मम्मा आपके साथ है ना " शालिनीं ने बालमन को एक सांत्वना देने का प्रयास किया । क्योकि वह भी इन प्रश्नों के जवाब नही जानती थी।  वह तो बस चल सकती थी सिर्फ और सिर्फ चल सकती थी । बिना किसी दिशा के बिना कोई रास्ता जाने । वह बस प्रयास करना चाहती थी कि किसी भी प्रकार इस जंगल से बाहर निकला जाए । ये था तो ऐसा जैसे अंधेरे में तीर चलाना लेकिन वह कर भी क्या सकती थी । उसके पास और कोई रास्ता भी तो नही बचा था ।


जैसे जैसे शालिनीं आगे बढ़ रही थी जंगल ओर भी गहरा होता जा रहा था । पेड़ो की अनन्त कतारे चारो तरफ फैली हुई थी ।

जिनमे कुछ पेड़ फलों के थे तो कुछ छायादार पेड़ थे।  पेड़ो की ऊंचाई और घनापन इतना ज्यादा था कि सूरज की किरणें भी बमुश्किल ही आर पार आ पा रही थी । आगे चलने पर जंगल की गहराई के साथ साथ उसकी सुंदरता भी बढ़ती जा रही थी । चारो तरफ ऊंचाई से गिरते झरनो का पानी बड़े - बड़े शिलाखण्डों पर गिरकर  भयानक आवाज से वातावरण को गुंजायमान किये हुए था ।  चारो तरफ पक्षियों के चहचहाने की आवाज वातावरण को मोहक भी बना रही थी । जंगल के इस हिस्से में दूर - दूर तक पानी के तालाब भरे हुए थे । जिनमें खिलते रंग बिरंगे कमल और पानी मे उगने वाली वनस्पति तालाब की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । इस जंगल के बीच से एक विशालकाय नदी भी निकलती थी । जिसका पानी अमृत के समान शुद्ध और शीतल था । इस प्रकार के वातावरण को देखकर किसी का भी मन नही करेगा कि वह इस स्थान को छोड़ कर कहि और चला जाए ।

थकान भी बहुत ज्यादा हो चुकी थी । भूख भी लग रही थी । शालिनीं ने मन ही मन सोचा कि तालाब में स्नान करके आगे बढ़ा जाए । स्नान करने से थकावट भी दूर हो जाएगी और इस जंगल से बाहर निकलने की शक्ति भी शरीर को मिल जाएगी । ये सोच कर वह तालाब में उतर जाती है । तालाब का पानी कांच की तरफ साफ और ठंडा था । जिसमे उतरते ही शालिनी की थकावट तो जैसे दूर ही हो गयी थी ।

वह कुछ देर इस तालाब में इसी प्रकार बैठ कर इसकी शीतलता को महसूस करना चाहती थी । तभी उसे तालाब में कुछ हलचल सी महसूस हुई जैसे कोई जंगली जानवर हो। लेकिन उसे कोई नजर नही आया ।

" शायद ये मेरा बहम है । मैं कुछ ज्यादा ही डरी हुई हूँ , इसलिए मुझे किसी के होने का अहसास हो रहा है ।" शालिनीं मन ही मन अपने आप से बाते करके खुद को समझाने  का प्रयास कर रही थी। उसका  मन फिर भी किसी अनहोनी की आशंका से ग्रसित अवश्य था । फिर भी उसने उन सभी बातों को एक तरफ रखते हुए अपनी बेटी को आवाज दी  -- " प्रीति तुम भी आजाओ नहा लो जिस से तुम भी अच्छा महसूस करोगी । आजाओ...... आजाओ....."

अपनी माँ की बात सुनकर प्रीति भी तालाब के किनारे के पानी मे उतर गई। नहाते - नहाते शालिनीं प्रीति को भी अपने पास ही तालाब के बीच मे ही ले आई थी। शालिनीं को फिर लगा कि शायद तालाब में कोई बड़ा जानवर है ।

" चलो अब तालाब से बाहर चलते है " शालिनीं ने प्रीति से तालाब के किनारे की तरफ बढ़ते हुए कहा ।

" नही माँ मुझे मजा आ रहा  है । मैं थोड़ी देर और नहाना चाहती हूं " प्रीति ने पानी मे अठखेलियां करते हुए शालिनीं को जवाब दिया ।

" नही बेटा .... अब बस बहुत हो गया है । हमे अब बाहर निकलना चाहिए । फिर हमें सूरज छिपने से पहले ही इस जंगल से बाहर भी तो निकलना है । " शालिनीं ने प्यार से डांटते हुए प्रीति को कहा ।

इतना सुनकर प्रीति माँ के पीछे - पीछे किनारे की तरफ बढ़ने लगी । शालिनीं लगभग किनारे पहुँच गयी थी की प्रीति की चीख सुनाई दी - " माँssssss .... माँssssssss...... बचाआआआआओ .... बचाआआआआओ "

पीछे घूम कर देखा तो शालिनीं कि जैसे जान ही निकल गई। एक मगरमच्छ प्रीति को पानी के बीच मे खींच रहा था । मगरमच्छ ने प्रीति के पैर को पकड़ लिया और उसके पैर से खून बहने लगा जिस से तालाब का पानी धीरे - धीरे लाल हो रहा था ।

" प्रीतिईईईईईई ....... तुम्हे कुछ नही होगा । " कह कर शालिनी तेजी के साथ प्रीति की तरफ बढ़ी। शालीन , प्रीति को अपनी तरफ खिंचने की कोशिश कर रही थी । लेकिन उस शक्तिशाली मगरमच्छ से मुकाबला नही कर पा रही थी । उसे कुछ समझ नही आरहा था कि वह ऐसा क्या करे जिससे उसकी बेटी की जान बच जाए । उसे इस गहरे जंगल मे कोई नजर भी नही आरहा था जिससे वह मदद मांग सके। उसने चारो तरफ नजर दौड़ाई लेकिन उसे ऐसा कुछ भी नजर नही आ रहा था । जिस से वह अपनी बेटी की जान बचा सके। मगर लगातार उसे पानी मे खिंचे जा रहा था । तालाब का पानी प्रीति के खून से लाल हो गया था ।

" भगवान मेरी सहायता करो , सहायता करो मेरी ......" शालिनीं रोते हुए प्रीति को अपनी तरफ खिंचने का असफल प्रयास कर रही थी । उसे पानी मे पेड़ से सूख कर गिरा हुआ एक लकड़ी का डंडा तैरता नजर आया । उसे देखते ही उसके मन मे प्रीति को बचाने का एक विचार आया और उसने उस लकड़ी के डंडे को लेकर मगरमच्छ की आंख में घुसा दिया । अचानक हुए इस वार ने मगरमच्छ को घायल कर दिया और उसने प्रीति के पैर को छोड़ दिया । शालिनीं उसे लेकर जैसे ही घूमी तब तक देर हो चुकी थी । शालिनीं और प्रीति को चारों तरफ से मगरमच्छों ने घेर लिया था । यह तालाब मगरमच्छों का घर था  । जो इंसानी खून की महक पाकर भोजन की लालसा में आगए थे । शालिनीं प्रीति को लेकर धीरे धीरे किनारे की तरफ उसी डंडे को हाथ मे लिए बढ़ रही थी । जिस से अभी - अभी अपनी बेटी को मगरमच्छ की गिरप्त से छुड़ाया था । जो भी मगरमच्छ पास आता वह उस पर नुकीले डंडे से वार करती । पूरी तरह चौकन्नी होने के बावजूद एक मगरमच्छ ने अबकी बार शालिनीं के पैर को ही पकड़ लिया । अचानक हुए इस हमले से शालिनीं के हाथ से वह डंडा भी छूट गया । अब खुद शालिनीं की जान खतरे में थी । चारो तरफ से उनकी तरफ बढ़ते मगरमच्छों के झुंड को देख कर एक बारगी तो शालिनीं ने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी । शालिनीं अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी लेकिन पानी के राजा से पानी मे कौन जीत सकता है । अब शालिनीं के साथ - साथ , एक दूसरे मगरमच्छ ने प्रीति के हाथ को पकड़ लिया ।

सच ही कहा है किसी ने की " अपनी संतान को खतरे में देख कर माँ पूरी दुनिया से अकेले ही लड़ जाती है ।" प्रीति को खतरे में देख कर शालिनीं के शरीर मे जैसे जान ही आगयी । काफी कोशिशों के बाद शालिनीं उस डंडे को पकड़ने में  कामयाब हो गयी थी । हाथ में डंडे के आते ही उसने पहले अपने आप को मगरमच्छ की गिरप्त से छुड़ाया । छूटते ही शालिनीं प्रीति की ओर लपकी जो भी शालिनी के रास्ते में आ रहा था,  शालिनीं उसे ही घायल करके तेजी से आगे बढ़ रही थी । लग रहा था जैसे अब भूखे मगरमच्छ नही शालिनीं हो । जिस मगरमच्छ ने प्रीति को पकड़ा उसके पेट पर शालिनीं ने पूरे जोर से वार किया । डंडा उसके पेट के आर - पार हो गया । शालिनीं ने उसे मौत के घाट उतार दिया । प्रीति के छूटते ही शालिनीं प्रीति को लेकर तेजी से तैरती हुई किनारे तक पहुंची । प्रीति के हाथ और पैर दोनों घायल हो गए थे । काफी खून भी बह रहा था । शालिनीं ने अपनी चुन्नी के दो भाग किए और बेटी के हाथ और पैर को कस कर बांध दिया ताकि खून का बहना रुक जाए।

प्रीति दर्द के मारे रो रही थी । प्रीति के दर्द को देखकर शालिनीं तो अपने दर्द को भूल ही गयी थी। वह तो ये भी भूल गयी थी कि उसे भी मगरमच्छ ने पकड़ा था ।

" मैं अपनी बेटी को कुछ नही होने दूंगी । हम अभी जल्दी ही हॉस्पिटल जाकर डॉक्टर से इलाज करवाएंगे ।" शालिनीं ने रोते हुए प्रीति को अपने गले से लगा कर कहा ।

प्रीति को गोद मे उठाये शालिनीं उन भयानक तालाबो से काफी दूर आगयी थी । वह किसी भी प्रकार इस जंगल से जल्द से जल्द बाहर निकलना चाहती थी । उसने जंगल की सुंदरता को अनदेखा कर दिया क्योकि वह समझ चुकी थी कि इस जंगल की सुंदरता के पीछे एक भयानक चेहरा छिपा हुआ है । लेकिन वह यह भी भूल गयी कि इस सुंदरता को नजरअंदाज करके वह आगे आने वाले संकट से बच नही सकती थी । चलते - चलते वह एक ऐसे स्थान पर पहुँची जहाँ पर पहले से भी भयानक खतरा उसकी बांहे फैलाये इंतजार कर रहा था। उस जगह के बारे मे कुछ समझ पाती इससे पहले ही जहरीले सांपो ने उसे घेर लिया । शायद शालिनीं का इस खतरे से बच पाना मुश्किल ही था । वह खुद भी घायल हो चुकी थी । उसकी बेटी भी घायल थी । ऊपर से लगातार चलने के कारण शरीर की शक्ति लगभग खत्म हो चुकी थी । फिर भी वह बचने का एक प्रयास और करना चाहती थी । सामने ही एक पहाड़ी थी । उसने मन ही मन उस पहाड़ी पर चढ़ने के निश्चय किया और हाँफते - हाँफते पहाड़ी की तरफ दौड़ने लगी । जिस गति से शालिनीं दौड़ रही थी, उससे तेज गति से सांप रेंग कर शालिनीं और उसकी बेटी को अपना निवाला बनाने के लिए पीछा कर रहे थे । दौड़ते - दौड़ते शालिनीं के कदम एकाएक रुक गए क्योकि सामने मौत थी । एक भूखा अजगर मुँह खोले सामने था। अब यहां से शालिनीं पीछे नही जा सकती थी और ना ही आगे बढ़ सकती थी। शालिनीं के लिए एक तरफ कुआं , एक तरफ खाई वाली स्तिथि बन गयी  । दोनों ही तरफ बचने का कोई भी रास्ता नही था । शालिनीं को अब अपनी मौत निश्चित नजर आरही थी । इससे पहले शालिनीं बचने का कोई भी रास्ता सोचती अजगर उसके पैरों के चारों तरफ लिपट चुका था । शालिनीं के पीछे आए सांपो का झुंड वापस लौट चुका था । या तो ये अजगर उनका राजा था या फिर इसकी भयानकता को देख कर उन्होंने अपने भोजन का विचार ही त्याग दिया था।

अजगर की पकड़ धीरे - धीरे कसती जा रही थी । उस कसावट में लग रहा था जैसे किसी ने शालिनीं को कसकर किसी पेड़ से बांध दिया हो । जिस से वह हिल - डुल ना सके ।  अजगर लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था । अजगर धीरे - धीरे शालिनीं के पूरे शरीर पर लिपट रहा था । जिससे शालिनीं कि जान निकले जा रही थी । सम्भवतया कुछ हड्डियां भी टूट गई हो ।

अपने बचने का कोई भी रास्ता जब शालिनीं को नजर नही आया तो उसने प्रीति को अपनी गोद से दूर फेंक दिया ।

" भागो यहां से और पीछे मुड़ कर मत देखना। इस पहाड़ी पर चढ़ जाओ । भागो........... भागो..........." शालिनीं जोर से चिल्लाई

" नही , मैं आपको छोड़ कर नही जाऊंगी । आपको भी मेरे साथ ही चलना होगा " - प्रीति ने रोते हुए कहा ।

" नही प्रीति भागो यहाँ से । सीधे इस पहाड़ी पर चढ़ जाओ जितनी जल्दी चढ़ सकती हो ।जाओ......... जाओ..........पागल मत बनो जाओ.......... अपनी जान बचाओ " शालिनीं ने अबकी बार गुस्से से प्रीति को देखकर कहा ।

अपनी माँ के गुस्से को देखकर रोते - रोते प्रीति पहाड़ी की और बढ़ने लगी । प्रीति के हाथ पैर घायल थे । घावों से खून रिस रहा था ।

जब व्यक्ति में जीवन जीने की इच्छा रहती है तो उसके शरीर मे ताकत आ ही जाती है । वह अपने दर्द को भुला कर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ ही जाता है ।

शालिनीं ने अब अपने जीने की उम्मीद छोड़ ही दी थी । वह दूर जाते हुए प्रीति को देखे जा रही थी । शायद उसे इस बात की संतुष्टि थी कि उसने अपनी बेटी को इस भयानक अजगर से बच लिया था।

शालिनीं की सांसे उखड़ने लगी । अजगर अब शालिनीं के सीने तक आगया था । उसकी कसावट इतनी ज्यादा हो चुकी थी कि अगर ओर दो मिनट अगर ऐसा ही रहा तो शालिनीं के शरीर के कई टुकड़े हो जाएंगे । शालिनीं के शरीर मे दर्द बढ़ता ही जा रहा था । वह तो बस अपनी मौत का इंतजार कर रही थी ।

अचानक शालिनीं को कहीं से गोली चलने की आवाज आई । शालिनीं का दिल अनहोनी की आशंका के डर से धक से रह गया । उसे लगा शायद प्रीति को किसी ने गोली मार दी है ।

सामने की तरफ नजर दौड़ाने पर प्रीति सही सलामत पहाड़ी पर चढ़ती हुई दिखाई दी । तभी एक बार और गोली चलने की आवाज आई । अजगर की पकड़ ढीली पड़ने लगी । अजगर के शरीर से खून बहने लगा । शालिनीं ने पहाड़ी के ऊपर की तरफ देखा तो  एक व्यक्ति बंदूक लिए उसी की तरफ निशाना साधे खड़ा था । शालिनीं को समझ आगया था कि इस अजगर को उसी ने मारा । शायद भगवान ने शालिनीं की प्रार्थना सुन ली थी ।

" भागो यहां से और ऊपर आजाओ । जल्दी करो " - उस बंदूकधारी व्यक्ति ने शालिनीं को ऊपर आने का इशारा करते हुए कहा ।

शालिनीं पहले से ही काफी घायल हो चुकी थी । उसके शरीर मे अब इतनी जान नहीं बची थी कि वह इस पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ सके ।

पहाड़ी भी एक घने जंगल से घिरी हुई थी और उसकी ऊंचाई भी काफी ज्यादा थी ।

 गोली चलने की आवाज पर प्रीति ने पीछे घूम कर देखा तो शालिनीं अजगर के पाश से छूट गयी थी ।

अपनी माँ को जिंदा देखकर प्रीति चिल्लाई - " माँSSSSS जल्दी करो आजाओ "

प्रीति की आवाज ने शालिनीं को एक बार फिर खड़े होने में मदद की और वह अपनी पूरी ताकत से पहाड़ी की और दौड़ी । उसे लग रहा था कि वह दौड़ रही है लेकिन वह तो रेंग कर चल रही थी । एक छोटा बच्चा भी शालिनीं से तेज दौड़ सकता था ।

रेंगकर ही सही शालिनीं प्रीति के पास पहुच गयी । अब दोनों ऊपर की तरफ बढ़ रही थी । जहाँ पर वह बंदूकधारी उनका इंतजार कर रहा था।

धीरे धीरे वे पहाड़ी की चोटी तक पहुँच गए थे ।

" माँSSSSSSSSS "

माँ की आवाज के साथ शालिनीं ने प्रीति को नीचे की तरफ फिसलते हुए देखा ।

" प्रीतिईईईईईईई " शालिनीं चीखी ।

फिसलते हुए प्रीति कई पेड़ो से टकराई और एक पेड़ से टकराकर वही निढाल हो कर गिर गई । शालिनीं कि तो जैसे जान ही निकल गयी थी । वह इस अवस्था मे तो बिल्कुल भी नही थी कि वह वापस नीचे की तरफ जाकर उसे अपनी गोद मे उठा लाए ।

" मेरी मदद करो । मेरी बेटी नीचे की तरफ गिर गयी है । कृपया मेरी मदद करो। कोई तो मेरी मदद करो । " रोते - रोते शालिनीं का गला ही रुंध गया ।

" घबराओ नही । मैं आपकी बेटी को लेकर आता हूँ आप ऊपर चल कर गाड़ी में बैठो " - चीखने की आवाज सुनकर नीचे उतरे बंदूकधारी ने कहा ।

 उस बंदूकधारी को सामने देख कर शालिनीं उसके आगे हाथ जोड़कर विनती करने लगी - " कृपया मेरी बेटी को बचा लो , बचा लो मेरी बेटी को "

" हां मैं आपकी बेटी को बचा लूंगा । आप मेरा विश्वास कीजिए और ऊपर चल कर गाड़ी में बैठिए । तब तक मैं आपकी बेटी को ऊपर लेकर आता हूँ " बन्दूकधारी ने शालिनीं को विश्वास दिलाते हुए कहा और तेजी से नीचे की तरफ चल दिया ।

शालिनीं भी ऊपर चढ़ कर गाड़ी की तरफ बढ़ने लगी ।शालिनीं के गाड़ी तक पहुँचने से पहले ही बन्दूकधारी प्रीति को लेकर गाड़ी तक आ चुका था ।

" प्रीति...... प्रीति ........ आंखे खोलो बेटा । अपनी माँ से बात करो । आंखे खोलो बेटा " - प्रीति को सामने देखकर शालिनीं ने प्रीति को झिंझोड़ते हुए कहा ।

" ये ठीक है । बस बेहोश हो गयी है । आप गाड़ी में बैठो । मैं आपको जल्द से जल्द डॉक्टर तक लेकर चलता हूँ । तुम्हे इलाज की सख्त जरूरत है। " - इतना कह कर बन्दूकधारी गाड़ी में प्रीति को पीछे की सीट पर लिटा कर खुद ड्राइवर सीट  पर आकर बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट कर दी ।

उसके पीछे शालिनीं भी प्रीति का सिर गोद मे लेकर बैठ गई ।

गाड़ी अब अपने गंतव्य पथ की और चल पड़ी थी । शालिनीं प्रीति के बालों में उंगलियां घुमा रही थी और सोच रही थी अगर सहायता नही मिलती तो इस खौफनाक जंगल की भयानकता और बढ़ सकती थी । शायद वह अपनी बेटी को खो देती । यह जंगल जितना सुंदर दिखता था उतना ही भयानक और खौफनाक भी था । जैसे - जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी । वैसे - वैसे शालिनीं के मन में इसी प्रकार के झंझावात उठ रहे थे और इसी के साथ उसकी चेतना भी खोती जा रही थी। 

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