दोस्त
एक ऐसा शब्द जिसके आगे संसार के सारे बन्धन सारे रिश्ते गौण हो जाते है । कहते है कि जोड़िया ईश्वर बनाता है लेकिन दोस्त ही एक ऐसा रिश्ता है जो हम खुद बनाते है । जीवन मे दोस्त की महत्ता इस बात से समझ आती है कि - अगर सुदामा के दोस्त भगवान श्री कृष्ण नही होते तो ? , अगर अर्जुन के दोस्त भगवान श्री कृष्ण नही होते तो ? , कर्ण अगर दुर्योधन का दोस्त नही होता तो ? , अगर भगवान श्रीराम के सुग्रीव जैसे दोस्त नही होते तो ? , भगवान श्री राम के हनुमान जैसे सेवक सदृश दोस्त नही होते तो ? , भगवान श्री राम के विभीषण दोस्त नही होते तो ?

सच पूछो तो अगर भगवान के भी दोस्त नही होते तो भगवान भी अधूरे ही होते। भगवान को भी पूर्ण होने के लिए एक दोस्त की आवश्यकता होती है। अगर भगवान के दोस्त नही होते तो इतिहास से भगवान जैसे शब्द गायब हो जाते । दोस्त ही एक ऐसा व्यक्ति होता है , जो संस्कारी हो तो ईश्वर बना देता है , अगर दोस्त संस्कारी नही हो तो राक्षस बना देता है ।
जैसे स्त्री और पुरुष गाड़ी के पहिये होते है । वैसे ही दोस्त की भूमिका जीवन मे एक सारथी के जैसे होती है ।

अगर अच्छा दोस्त मिल जाए तो जीवन की सभी समस्याएं खत्म हो जाती है । अगर दोस्त अच्छा नही तो जीवन मे समस्या ही समस्या है ।
इसलिए जीवन मे दोस्त होना जरूरी ही नही आवश्यक है । जीवन मे एक दोस्त भगवान श्री कृष्ण जैसा होना चाहिए जो सद्मार्ग पर ले जाए , एक दोस्त कर्ण जैसा होना चाहिए जो आपके बारे में सब कुछ जानते हुए भी कभी आपका साथ नही छोड़े ।
सुरेंद्र हिन्दू
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