यकायक एक शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया..
"ट्रेन रोको"
कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी..ट्रेन रुक गईं..!!
ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया। कड़क आवाज में पूछा..
किसने ट्रेन रोकी..??
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा..
"मैंने रोकी श्रीमान"..
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, बिना कारण ट्रेन रोकना अपराध हैं..गार्ड गुस्से में बोला..!!
हाँ श्रीमान ज्ञात है किंतु, मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती..!!
अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा। सभी उसको गालियां दे रहे थे..गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे..किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था,मानो उस पर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो..उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी..!!
किस्सा दरअसल आजादी से पहले, ब्रिटेन का है..!!ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था..!!
उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा....यहाँ से करीब एक फरलाँग(220 गज) की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं..आप चाहे तो चलकर देख सकते है..!!
गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी..!!
रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे..!!
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी। नट-बोल्ट खुले हुए थे।
अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे, वे सभी उसकी और कौतूहलवश देखने लगे..मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..
गार्ड ने पूछा... तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा... "श्रीमान लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे..उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था.!! ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ..ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो..!!
अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी..!!
गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये। गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान, आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते। अपना परिचय दीजिये।
शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया...
श्रीमान मैं "इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया"
जी हाँ वह असाधारण शख्स कोई और नही
"डॉ विश्वेश्वरैया" थे..जो देश के "प्रथम इंजीनियर" थे..!!
आज उनका जन्मदिवस हैं,उनके जन्मदिवस को अभियंता दिवस(इंजीनियर_डे) के रूप मे मनाया जाता हैं..!!
सफल इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
जन्म : 15 सितंबर 1860
मृत्यु : 14 अप्रैल 1962
भारत के माने हुए सफल इंजीनियर मोक्षगुंड म विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुका में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे।
विश्वेश्वरैया को भारत की प्रौद्योगिकी का जनक कहा जाता है। वे ईमानदारी, त्याग, मेहनत इत्यादि जैसे सद्गुणों से संपन्न थे। उनका कहना था, कार्य जो भी हो लेकिन वह इस ढंग से किया गया हो कि वह दूसरों के कार्य से श्रेष्ठ हो।
विश्वेश्वरैया ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्हें कितनी कठिन परिस्थितियों सो गुजरना पड़ा परंतु वह कभी निराश नहीं हुए।
अपनी आत्मकथा में उन सिद्धांतों पर प्रकाश डाला है, जिनका अनुपालन कर वे प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सके । इस पुस्तक का नाम है 'मेमॉयर्स ऑफ माई वर्किंग लाइफ।'
इस पुस्तक में वे लिखते हैं- 'मैंने चार सिद्धांतों को आदि से अंत तक अपनाए रखा। जो मेरी ही तरह सफल और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना चाहते है, उन्हें उन सिद्धांतों का स्मरण दिलाना चाहता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि मेरी ही तरह अन्य लोग भी उसे अपनाने का प्रयास करें।
वे सिद्धांत इस प्रकार हैं :-
1. लगन से काम करो। मेहनत से जी न चुराओ। आराम कड़ी मेहनत के उपरान्त ही अच्छा लगता है।
2. निर्धारित कार्यों का समय नियत करो। समय पर काम करने की आदत डालने से काम अधिक भी होता है और अच्छा भी। इसलिए सबसे जरूरी है काम को निश्चित समय पर पूरा करना। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो काम की अवधि बढ़ती रहेगी और अंततः काम पूरा नहीं होगा।
3. यह सोचते रहो कि आज की अपेक्षा कल किस तरह अधिक अच्छा काम हो सकता है। जो सीख चुके हो, उससे अधिक सीखने का प्रयत्न करो। सोचो, योजना बनाओ, गुण-दोषों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के उपरांत काम में हाथ डालो।
4. अहंकारी न बनो। अपना स्वभाव नम्र बनाओ तथा साथियों के साथ मिलजुल कर काम करने की आदत डालो।
उनकी जनहितकारी उपलब्धियों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। जब वह 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर उनके सम्मान को और बढ़ाया। 101 वर्ष की दीर्घायु में 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया।
Comments