क्या शर्मा जी अपनी खामोशियों और एकाकीपन से बाहर आ पाएंगे ?


" ये बाबूजी भी पता नही कब जाएंगे , कमल ने भी मेरे सर पर एक नई आफत लाकर रख दी " रसोई में खाना बनाते हुए रमेश जी की बहु कमला बड़बड़ा रही थी।

बाहर बरामदे में बैठे रमेश जी सब कुछ सुन रहे थे । रमेश जी खुद इस घर से जाना चाहते थे वो अपनी बहु का काम और नही बढ़ाना चाहते थे लेकिन उनका बेटा कमल मनाने को तैयार ही नही था । बहु बेटे के सामने तो कुछ नही कहती थी लेकिन पीछे से कहने में कोई कसर नही छोड़ती थी । रमेश जी बेटे से बहु की शिकायत ये सोचकर नही करते थे कि बेचारी दिनभर काम करती रहती है अगर मैंने बेटे को कुछ बताया तो बहु और बेटे के बीच झगड़ा हो जाएगा । रमेश जी अपने बेटे की ज़िंदगी मे कोई अशांति नही लाना चाहते थे इसलिए खुद सब कुछ शांत रहकर ही सुनते थे।

रमेश जी पिछले हफ्ते ही तो यहां आए थे जब उनकी पत्नी का देहांत हो गया था । कमल ही उन्हें गांव से लेकर आया था तब रमेश जी को लगा था कि शायद बेटे के परिवार के साथ रहकर अपने अकेलेपन से छुटकारा पा लेंगे लेकिन यहाँ हुआ एक दम विपरीत । यहाँ आकर तो रमेश जी उपेक्षित हो गए थे ।

" बाबूजी आपने अभी तक खाना नही खाया ठंडा हो गया है " ऑफिस से घर आए कमल ने सामने रखी खाने की प्लेट और बाबूजी को ख्यालो में देखकर कहा


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" हम्म्म्म खाना..... हाँ खाना खा रहा हूँ " रमेश जी अचानक ख्यालो से बाहर आए लगा जैसे कोई बिजली का झटका लगा हो । रमेश जी को पता ही नही चला कि उनके सामने खाने की प्लेट कब रख दी गई ।

खाने को छूकर देखा तो खाना ठंडा हो चुका था शायद काफी देर पहले रखा गया था खाना । तब तक कमल भी अपनी खाने की प्लेट लेकर आगया था।

" क्या बात है बाबूजी , आप कुछ परेशान लग रहे है " डाइनिंग कुर्सी पर बैठते हुए कमल ने कहा

" नही बेटा .. ऐसी कोई बात नही है "

" मां की याद आ रही है ? " रमेश ने हंसते हुए वातावरण को ठीक करने की कोशिश की लेकिन रमेश जी के चेहरे पर खुशी नही झलकी शायद रमेश जी यहाँ से जाने का पूरा मानस बना चुके थे ।

" क्या हुआ बाबुजी ? कुछ तो बात है जो आप मेरे से छुपा रहे है "

" नही बेटा ऐसी कोई बात नही है और मैं तेरे से क्यो कोई बात छुपाउँगा एक तू ही तो है जिसे मैं सब कुछ बता सकता हूँ । "

" हाँ बाबुजी वो सब ठीक है लेकिन आज आप सच मे कुछ छुपा रहे है ? बताओ आपको मेरे सर की कसम है क्या बात है ?? " कमल ने रमेश जी के हाथ को अपने सर पर रखते हुए कहा ।

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रमेश जी सच्चाई बता कर अपने बेटे की ज़िंदगी मे भूचाल नही लाना चाहते थे और इस घर मे रुकना भी नह चाहते थे ।

" वो मुझे गांव जाना था । गांव की बहुत याद आरही थी " रमेश जी ने बात को बदलते हुए कहा

" क्यो बाबुजी क्या यहाँ आपको कोई परेशानी है ? "

" नही बेटा ऐसी कोई बात नही है । यहाँ बैठे बैठे बोर हो जाता हूँ गांव में मुझे जानने वाले भी काफी लोग है । यहाँ मुझे कोई जानता भी नही है और कोई घूमने की जगह भी नही है "

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" लेकिन बाबुजी आपको समझना चाहिए वहाँ आपका कौन ध्यान रखेगा ? "

" तुम उसकी चिंता मत करो बेटा , वैसे भी मैं कुछ दिन यहाँ और कुछ दिन वहाँ रहना चाहता हूं जिससे मेरा मन भी लगा रहे और सबसे जुड़ा भी रहूं "

" ठीक है मैं आपको कल गांव छोड़कर आजाऊँगा लेकिन कुछ दिनों बाद आपको वापस यही मेरे पास आना होगा "

" हां ठीक है "

दूसरे दिन कमल ने रमेश जी को गांव के अपने पुराने घर छोड़ दिया था और उनके पुराने नौकर रामू को सख्त हिदायत भी दे दी कि बाबुजी के ध्यान रखने में कोई कमी नही रहनी चाहिए ।

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रमेश जी ने घर आकर एक चैन की सांस ली ।

रमेश जी को गांव आये आज चार दिन हो गए थे । वे अपने सभी पुराने दोस्तों से मिल चुके थे । बारिश का मौसम भी शुरू हो चुका था पिछले कुछ दिनों से लगतार बारिश हो रही थी इसलिए रमेश जी अपने घर से बाहर ही नई निकल पा रहे थे।  इस बारिश के कारण उनसे मिलने भी कोई नही आता था जिसके कारण रमेश जी एक बार फिर अकेलेपन और अवसाद से घिर गए।

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आज बारिश कुछ ज्यादा ही हो रही थी । सड़क पर पानी ही पानी हो गया था । रमेश जी बालकनी में बैठे बाहर का नजारा देख रहे थे।  रामू उनके लिए चाय बना लाया था। बारिश का मौसम और गर्मागर्म चाय एक यही तो सबसे अच्छी दोस्त होती है इस मौसम में जो बारिश का आनंद दोगुना कर देती है लेकिन रमेश जी का तो जैसे आनंद ही छीन चुका था । कुछ देर बाद बारिश रुक गई तो मोहल्ले के सारे बच्चे बाहर सड़क पर पानी मे मस्ती करने के लिए अपने घरों से निकल आए थे । कोई कागज की नाव बना रहा था तो कोई पानी मे उछलकूद मचा रहा था । उन्हें देखकर रमेश जी का अकेलापन कहि घुम हो गया था । वो अपने पुराने दिनों की यादों में लौट आये थे जब बारिश के मौसम में आस पास की सभी नालियों में सिर्फ कागज की नाव ही तैरती हुई नजर आती थी । नजर आते थे तो कीचड़ में मस्ती करते हुए बच्चे , नजर आते थे तो चारो तरफ बच्चे ही बच्चे और उनके शोर से गुंजता गांव । गरम गरम पकौड़ीयो की खुशबू के बिना तो बारिश का आनंद ही अधूरा सा रहता है ।

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बच्चो की मस्ती का आनंद लेते - लेते रमेश जी कब बच्चो के पास पहुँच गए रामू को पता ही नही चला । जब उसकी नजर बाहर पड़ी तो रमेश जी बच्चो के साथ पानी मे मस्ती कर रहे थे और कागज की नाव बना कर पानी मे बहा रहे थे । रमेश जी बच्चो के बीच जाकर एक दम बच्चे बन गए थे । बच्चो के साथ मिलकर वे अपने बचपन मे लौट आए थे । कुछ देर के बाद गांव की नालियों में तैरती हुई कागज की नाव नजर आने लगी थी । आज रमेश जी एक दम अपने बीते बचपन मे
लौट आये थे । बच्चो के साथ कि गई मस्ती के कारण आज रमेश जी बहुत खुश थे लगा कि जीवन जीने का एक नया बहाना और तरीका मिल गया ।


उस दिन से बच्चे ,  रमेश जी के सबसे अच्छे दोस्त बन गए थे। अब उनके खेलने और मस्ती करने का पूरे गांव में बस एक ही ठिकाना था रमेश जी का घर । मानसून के मौसम में बहती कागज की नाव की तरह अब रमेश जी का एकाकीपन और अवसाद कहि दूर बहुत दूर जा चुके थे ।


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